वह वाक्य, जो अर्थ को पूर्ण रूप से स्पष्ट करता है, उसे लोकोक्ति कहते है। लोकोक्ति को ‘कहावतें’ भी कहा जाता है। कहावतें कही हुई बातों के समर्थन में होती है।
लोकोक्ति के उदाहरण -
लोकोक्तियाँ | अर्थ |
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अंडा सिखावे बच्चे को कि चीं-चीं मत कर | जब कोई छोटा बड़े को उपदेश दे। |
अन्त भले का भला | जो भले काम करता है, अन्त में उसे सुख मिलता है। |
अंधा क्या चाहे, दो आंखे | आवश्यक या अभीष्ट वस्तु अचानक या अनायास मिल जाती है, तब ऐसा कहते है। |
अंधा बांटे रेवड़ी फिर-फिर अपने को ही दे | अधिकार पाने पर स्वार्थी मनुष्य अपने ही लोगों और इष्ट-मित्रों को ही लाभ पहुंचाते है। |
अंधा सिपाही कानी घोड़ी, विधि ने खूब मिलाई जोड़ी | जहाँ दो व्यक्ति हों और दोनों ही एक समान मूर्ख, दुष्ट या अवगुणी हों वहां ऐसा कहते है। |
अंधी पीसे, कुत्ते खायें | मूर्खों की कमाई व्यर्थ नष्ट होती है। |
अंधे के आगे रोवे, अपना दीदा खोवे | मूर्खों को सदुपदेश देना या उनके लिए शुभ कार्य करना व्यर्थ है। |
अंधे को अंधेरे में बहुत दूर की सूझी | जब कोई मूर्ख मनुष्य बुद्धिमानी की बात कहता है तब ऐसा कहते है। |
अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा | जहाँ मालिक मूर्ख होता है, वहाँ गुण का आदर नहीं होता है। |
अंधों में काना राजा | मूर्खों अथवा अज्ञानियों में अल्पज्ञ लोगों का भी बहुत आदर होता है। |
अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग | कोई काम नियम-कायदे से न करना। |
अपनी पगड़ी अपने हाथ | अपनी इज्जत अपने हाथ होती है। |
अमानत में खयानत | किसी के पास अमानत के रूप में रखी कोई वस्तु खर्च कर देना। |
अस्सी की आमद, चौरासी खर्च | आमदनी से अधिक खर्च |
अति सर्वत्र वर्जयेत् | किसी भी काम में हमें मर्यादा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। |
अपनी करनी पार उतरनी | मनुष्य को अपने कर्म के अनुसार ही फल मिलता है। |
अंत भला तो सब भला | परिणाम अच्छा हो जाए तो सब कुछ माना जाता है। |
अंधे की लकड़ी | बेसहारे का सहारा |
अपना रख पराया चख | निजी वस्तु की रक्षा एवं अन्य वस्तु का उपभोग |
अच्छी मति जो चाहो बूढ़े पूछन जाओ | बड़े-बूढ़ों की सलाह से कार्य सिद्ध हो सकते है। |
अब की अब, जब की जब के साथ | सदा वर्तमान की ही चिन्ता करनी चाहिए। |
अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना | पूर्ण स्वतंत्र होना |
अपने झोपड़े की खैर मनाओ | अपनी कुशल देखो |
अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता/फोड़ता | अकेला आदमी कोई बड़ा काम नहीं कर सकता; उसे अन्य लोगों की सहयोग की आवश्यकता होती है। |
अक्ल के अंधे, गाँठ के पूरे | निर्बुद्धि धनवान् इसका मतलब यह है कि जिसके पास बिलकुल बुद्धि नहीं हो फिर भी वह धनवान हो तब इसका प्रयोग किया जाता है। |
अक्ल बड़ी कि भैंस | बुद्धि शारीरिक शक्ति से श्रेष्ठ होती है। |
अटका बनिया दे उधार | जिस बनिये का मामला फंस जाता है, वह उधार सौदा देता है। |
अति भक्ति चोर के लक्षण | यदि कोई अति भक्ति का प्रदर्शन करें तो समझना चाहिए कि वह कपटी और दम्भी है। |
अधजल/अधभर गगरी छलकत जाय | जिसके पास थोड़ा धन अथवा ज्ञान होता है, वह उसका प्रदर्शन करता है। |
अधेला न दे, अधेली दे | भलमनसाहत से कुछ न देना पर दबाव पड़ने पर या फंस जाने पर आशा से अधिक चीज दे देना। |
अनदेखा चोर बाप बराबर | जिस मनुष्य के चोर होने का कोई प्रमाण न हो, उसका अनादर नहीं करना चाहिए। |
अनमांगे मोती मिले मांगे मिले न भीख | संतोषी और भाग्यवान् को बैठे-बिठाये बहुत कुछ मिल जाता है, परन्तु लोभी और अभागे को मांगने पर भी कुछ नहीं मिलता। |
अपना घर दूर से सूझता है | अपने मतलब की बात कोई नहीं भूलता अथवा प्रियजन सबको याद रहते है। |
अपना पैसा सिक्का खोटा तो परखैया का क्या दोष? | यदि अपने सगे-सम्बन्धी में कोई दोष हो और कोई अन्य व्यक्ति उसे बुरा कहे, तो उससे नाराज नहीं होना चाहिए। |
अपना लाल गंवाय के दर-दर मांगे भीख | अपना धन खोकर दूसरों से छोटी-छोटी चीजें मांगना। |
अपना हाथ जगन्नाथ का भात | दूसरे की वस्तु का निर्भय और उन्मुक्त उपभोग। |
अपनी अक्ल और पराई दौलत सबको बड़ी मालूम पड़ती है। | मनुष्य स्वयं को सबसे बुद्धिमान समझता है और दूसरे की संपत्ति उसे ज्यादा लगती है। |
अपनी-अपनी डफली अपना-अपना राग | सब लोगों का अपनी-अपनी धुन में मस्त रहना। |
अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है। | अपने घर या मोहल्ले आदि में सब लोग बहादुर बनते है। |
अपनी फूटी न देखे दूसरे की फूली निहारे | अपना दोष न देखकर दूसरे के छोटे अवगुण पर ध्यान देना। |
अपने घर में दीया जलाकर तब मस्जिद में जलाते है। | पहले स्वार्थ पूरा करके तब परमार्थ या परोपकार किया जाता है। |
अपने दही को कोई खट्टा नहीं कहता। | अपनी चीज को कोई बुरा नहीं कहता। |
अपने मरे बिना स्वर्ग नहीं दिखता। | अपने किये बिना काम नहीं होता। |
अपने मुंह मियां मिळू | अपने मुंह से अपनी बड़ाई करने वाला व्यक्ति। |
अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत | काम बिगड़ जाने पर पछताने और अफसोस करने से कोई लाभ नहीं होता। |
अभी दिल्ली दूर है। | अभी काम पूरा होने में देर है। |
अमीर को जान प्यारी, फकीर/गरीब एकदम भारी | अमीर विषय-भोग के लिए बहुत दिन जीना चाहता है. लेकिन खाने की कमी के कारण गरीब आदमी जल्द मर जाना चाहता है। |
अरध तजहिं बुध सरबस जाता | जब सर्वनाश की नौबत आती है तब बुद्धिमान लोग आधे को छोड़ देते है और आधे को बचा लेते है। |
अशर्फियों की लूट और कोयलों पर छाप/मोहर | बहुमूल्य पदार्थों की परवाह न करके छोटी-छोटी वस्तुओं की रक्षा के लिए विशेष चेष्टा करने पर उक्ति। |
अशुभस्य काल हरणम् | जहाँ तक हो सके, अशुभ समय टालने का प्रयत्न करना चाहिए। |
अहमक से पड़ी बात, काढ़ो सोटा तोड़ो दांत | मूर्खों के साथ कठोर व्यवहार करने से काम चलता है। |
आंख के अंधे नाम नयनसुख | नाम और गुण में विरोध होना, गुणहीन को बहुत गुणी कहना। |
आंखों के आगे पलकों की बुराई | किसी के भाई-बन्धुओं अथवा इष्ट-मित्रों के सामने उसकी बुराई करना। |
आंखों पर पलकों का बोझ नहीं होता | अपने कुटुम्बियों को खिलाना-पिलाना नहीं खलता अथवा काम की चीज महंगी नहीं जान पड़ती। |
आंसू एक नहीं और कलेजा टूक-टूक | दिखावटी रोना। |
आई है जान के साथ जाएगी जनाजे के साथ | वह विपत्ति या बीमारी जो आजीवन बनी रहे। |
आ गई तो ईद बारात नहीं तो काली जुम्मे रात | पैसे हुए तो अच्छा खाना खायेंगे, नहीं तो रूखा-सूखा ही सही। |
आई मौज फकीर को, दिया झोपड़ा फूंक | विरक्त (बिगड़ा हुए) पुरुष मनमौजी होते है। |
आए थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास | जिस काम के लिए गए थे, उसे छोड़कर दूसरे काम में लग गए। |
आगे कुआँ, पीछे खाई | दोनों तरफ विपत्ति होना। |
आगे नाथ न पीछे पगहा, सबसे भला कुम्हार का गदहा या (खाय मोटाय के हुए गदहा) | जिस मनुष्य के कुटुम्ब में कोई न हो और जो स्वयं कमाता और खाता हो और सब प्रकार की चिंताओं से मुक्त हो। |
आठों पहर चौंसठ घड़ी | हर समय, दिन-रात। |
आठों गांठ कुम्मैत | पूरा धूर्त, घुटा हुआ। |
आत्मा सुखी तो परमात्मा सुखी | पेट भरता है तो ईश्वर की याद आती है। |
आधी छोड़ सारी को धावे, आधी रहे न सारी पावे | अधिक लालच करना अच्छा नहीं होता; जो मिले उसी से सन्तोष करना चाहिए। |
आपको न चाहे ताके बाप को न चाहिए | जो आपका आदर न करे आपको भी उसका आदर नहीं करना चाहिए। |
आप जाय नहीं सासुरे, औरन को सिखि देत | आप स्वयं कोई काम न करके दूसरों को वही काम करने का उपदेश देना। |
आप तो मियां हफ्तहजारी, घर में रोवें कर्मों मारी | जब कोई मनुष्य स्वयं तो बड़े ठाट-बाट से रहता है पर उसकी स्त्री बड़े कष्ट से जीवन व्यतीत करती है तब ऐसा कहते है। |
आप मरे जग परलय | मृत्यु के बाद की चिन्ता नहीं करनी चाहिए। |
आप मियां मांगते दरवाजे खड़ा दरवेश | जो मनुष्य स्वयं दरिद्र है वह दूसरों को क्या सहायता कर सकता है? |
आ बैल मुझे मार | जान-बूझकर विपत्ति में पड़ना। |
आम के आम गुठलियों के दाम | किसी काम में दोहरा लाभ होना। |
आम खाने से काम, पेड़ गिनने से क्या काम? (आम खाने से मतलब कि पेड़ गिनने से?) | जब कोई मतलब का काम न करके फिजूल बातें करता है तब इस कहावत का प्रयोग करते है। |
आया है जो जाएगा, राजा रंक फकीर | अमीर-गरीब सभी को मरना है। |
आरत काह न करै कुकरमू | दुःखी मनुष्य को भले और बुरे कर्म का विचार नहीं रहता। |
आस पराई जो तके, जीवित ही मर जाए | जो दूसरों पर निर्भर रहता है, वह जीवित रहते हुए भी मरा हुआ होता है। |
आस-पास बरसे, दिल्ली पड़ी तरसे | जिसे जरूरत हो, उसे न मिलकर किसी चीज का दूसरे को मिलना। |
इक नागिन अस पंख लगाई | किसी भयंकर चीज का किसी कारणवश और भी भयंकर हो जाना। |
इन तिलों में तेल नहीं निकलता | ऐसे कंजूसों से कुछ प्रप्ति नहीं होती। |
इब्तिदा-ए-इश्क है। रोता है क्या, आगे-आगे देखिए, होता है क्या? | अभी तो कार्य का आरंभ है; इसे ही देखकर घबरा गए, आगे देखो क्या होता है। |
इसके पेट में दाढ़ी है। | इसकी अवस्था बहुत कम है तथापि यह बहुत बुद्धिमान है। |
इहां कुम्हड़ बतिया कोउ नाहीं, जो तर्जनि देखत मरि जाहीं | जब कोई झूठा रोब दिखाकर किसी को डराना चाहता है। |
इहां न लागहि राउरि माया | यहाँ कोई आपके धोखे में नहीं आ सकता। |
ईश रजाय सीस सबही के | ईश्वर की आज्ञा सभी को माननी पड़ती है। |
ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया | भगवान की माया विचित्र है। संसार में कोई सुखी है तो कोई दुःखी, कोई धनी है तो कोई निर्धन। |
ईश रजाय सीस सबही के | ईश्वर की आज्ञा सभी को माननी पड़ती है। |
ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया | भगवान की माया विचित्र है। संसार में कोई सुखी है तो कोई दुःखी, कोई धनी है तो कोई निर्धन। |
उधरे अन्त न होहिं निबाह। कालनेमि जिमि रावण राहू।। | जब किसी कपटी आदमी को पोल खुल जाती है, तब उसका निर्वाह नहीं होता। उस पर अनेक विपत्ति आती है। |
उत्तम विद्या लीजिए, जदपि नीच पै होय | छोटे व्यक्ति के पास यदि कोई ज्ञान है, तो उसे ग्रहण करना चाहिए। |
उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई | जब इज्जत ही नहीं है तो डर किसका? |
उधार का खाना और फूस का तापना बराबर है। | फूस की आग बहुत देर तक नहीं ठहरती। इसी प्रकार कोई व्यक्ति बहुत दिनों तक उधार लेकर अपना खर्च नहीं चला सकता। |
उमादास जोतिष की नाई, सबहिं नचावत राम गोसाई | मनुष्य का किया कुछ नहीं होता। मनुष्य को ईश्वर की इच्छा के अनुसार काम करना पड़ता है। |
उल्टा चोर कोतवाल को डांटे | अपना अपराध स्वीकार न करके पूछने वाले को डांटने-फटकारने या दोषी ठहराने पर उक्ति (कथन)। |
उसी की जूती उसी का सिर | किसी को उसी की युक्ति (वस्तु) से बेवकूफ बनाना। |
ऊंची दुकान फीके पकवान | जिसका नाम तो बहुत हो, पर गुण कम हो। |
ऊंट के गले में बित्ली | अनुचित, अनुपयुक्त या बेमेल संबंध विवाह। |
ऊंट के मुंह में जीरा | बहुत अधिक आवश्यकता वाले या खाने वाले को बहुत थोड़ी-सी चीज देना। |
ऊंट-घोड़े बहे जाए, गधा कहे कितना पानी | जब किसी काम को शक्तिशाली लोग न कर सकें और कोई कमजोर आदमी उसे करना चाहे, तब ऐसा कहते है। |
ऊंट दूल्हा गधा पुरोहित | एक मूर्ख या नीच द्वारा दूसरे मूर्ख या नीच की प्रशंसा पर उक्ति (वाक्य/कथन)। |
ऊंट बर्राता ही लदता है | काम करने की इच्छा न रहने पर डर के मारे काम भी करते जाना और बड़बड़ाते भी जाना। |
ऊंट बिलाई ले गई, हां जी, हां जी कहना | जब कोई बड़ा आदमी कोई असम्भव बात कहे और दूसरा उसकी हामी भरे। |
एक अंडा वह भी गंदा | एक ही पुत्र, वही भी निकम्मा। |
एक आंख से रोना और एक आंख से हंसना | हर्ष (खुशी) और विषाद (दुःख) एक साथ होना। |
एक और एक ग्यारह होते है। | मेल में बड़ी शक्ति होती है। |
एक जिन्दगी हजार नियामत है। | जीवन बहुत बहुमूल्य होता है। |
एक तवे की रोटी, क्या पतली क्या मोटी | एक परिवार के मनुष्यों में या एक पदार्थ के कई भागों में बहुत कम अन्तर होता है। |
एक तो करेला (कड़वा) दूसरे नीम चढ़ा | कटु या कुटिल स्वभाव वाले मनुष्य कुसंगति में पड़कर और बिगड़ जाते हैं। |
एक ही थाली के चट्टे-बट्टे | एक ही प्रकार के लोग। |
एक न शुद, दो शुद | एक विपत्ति तो है ही दूसरी और सही। |
एक पंथ दो काज | एक वस्तु या साधन से दो कार्यों की सिद्धि। |
एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है। | यदि किसी घर या समूह में एक व्यक्ति बुरे चरित्र वाला होता है तो सारा घर या समूह बुरा या बदनाम हो जाता है। |
एक लख पूत सवा लख नाती, तो रावण घर दीया न बाती | किसी अत्यन्त ऐश्वर्यशाली व्यक्ति के पूर्ण विनाश हो जाने पर इस लोकोक्ति का प्रयोग किया जाता है। |
ओठों निकली कोठों चढ़ी | जो बात मुंह से निकलती है, वह फैल जाती है, गुप्त नहीं रहती। |
ओखली में सिर दिया तो मूसलों का क्या डर | कष्ट सहने पर उतारू होने पर कष्ट का डर नहीं रहता। |
और बात खोटी, सही दाल-रोटी | संसार की सब वस्तुओं में भोजन ही मुख्य है। |
अंधों में काना राजा | मूर्खों में कुछ पढ़ा-लिखा व्यक्ति |
अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता | अकेला आदमी लाचार होता है। |
अधजल गगरी छलकत जाय | डींग हाँकना |
आँख का अँधा नाम नयनसुख | गुण के विरुद्ध नाम होना |
आँख के अंधे गाँठ के पूरे | मुर्ख परन्तु धनवान |
आग लागंते झोपड़ा, जो निकले सो लाभ | नुकसान होते समय जो बच जाए वही लाभ है। |
आगे नाथ न पीछे पगही | किसी तरह की जिम्मेदारी न होना |
आम के आम गुठलियों के दाम | अधिक लाभ |
ओखली में सर दिया तो मूसलों से क्या डरे | काम करने पर उतारू |
ऊँची दुकान फीका पकवान | केवल बाह्य प्रदर्शन |
एक पंथ दो काज | एक काम से दूसरा काम हो जाना |
कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली | उच्च और साधारण की तुलना कैसी |
घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध | निकट का गुणी व्यक्ति कम सम्मान पाता है, लेकिन दूर का व्यक्ति का ज्यादा। |
चिराग तले अँधेरा | अपनी बुराई नहीं दिखती है। |
जिन ढूंढ़ा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ | परिश्रम का फल अवश्य मिलता है। |
नाच न जाने आँगन टेढ़ा | काम न जानना और बहाने बनाना |
न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी | न कारण होगा, न कार्य होगा |
होनहार बिरवान के होत चीकने पात | होनहार के लक्षण पहले से ही दिखाई पड़ने लगते है। |
जंगल में मोर नाचा किसने देखा | गुण की कदर गुणवानों बीच ही होती है। |
कोयल होय न उजली, सौ मन साबुन लाई | कितना भी प्रयत्न किया जाये स्वभाव नहीं बदलता है। |
चील के घोसले में माँस कहाँ | जहाँ कुछ भी बचने की संभावना न हो |
चोर लाठी दो जने और हम बाप पूत अकेले | ताकतवर आदमी से दो लोग भी हार जाते है। |
चंदन की चुटकी भरी, गाड़ी भरा न काठ | अच्छी वस्तु कम होने पर भी मूल्यवान होती है, जबकि मामूली चीज अधिक होने पर भी कोई कीमत नहीं रखती है। |
छप्पर पर फूंस नहीं, ड्योढ़ी पर नाच | दिखावटी ठाट-बाट परन्तु वास्तविकता में कुछ भी नहीं |
छछूंदर के सर पर चमेली का तेल | अयोग्य के पास योग्य वस्तु का होना |
जिसके हाथ डोई, उसका सब कोई | धनी व्यक्ति के सब मित्र होते है। |
योगी था सो उठ गया आसन रहा भभूत | पुराण गौरव समाप्त |
लोकोक्ति | अर्थ |
अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता | एक साथ मिलकर किया जाने वाला कठिन कार्य अकेला व्यक्ति नहीं कर सकता। |
अक्ल बड़ी की भैंस | शरीर की ताकत से बुद्धि की ताकत अधिक होती है। |
अटका बनिया देय उधार | स्वार्थ, लालच या मजबूरी वश अनचाहा कार्य करना। |
अधजल गगरी छलकत जाए | अज्ञानी व्यक्ति अपने ज्ञान को बढ़ा चढ़ा कर बताता है। |
अँधा पीसे कुत्ता खाय | मूर्ख व्यक्ति की कमाई दूसरे ही खाते है। |
अंधों में काना राजा | अज्ञानियों में थोड़ा ज्ञानी भी बुद्धिमान होता है। |
आंख का अंधा नाम नयन सुख | किसी का गुणों के विपरीत नाम होना। |
अंधे की लकड़ी | एकमात्र सहारा |
अंधे के आगे रोवे अपने भी नैन खोवे | अयोग्य व्यक्ति से सहायता मांगना व्यर्थ है। |
आंख का अंधा गांठ का पूरा | संपन्न अज्ञानी |
अंधे के हाथ बटेर लगना | परिश्रम के बिना ही सफलता मिलना। |
अंधेर नगरी चौपट राजा | भ्रष्टाचार में लिप्त शासन एवं अजागरूक प्रजा। |
अपनी-अपनी ढपली अपना-अपना राग | सिर्फ़ अपने मन की करना या दूसरों के साथ तालमेल नहीं बैठाना। |
अपनी गली में तो कुत्ता भी शेर होता है। | अपने घर या क्षेत्र में ताक़त दिखाना। |
अपना हाथ जगन्नाथ | अपना काम स्वयं करना। |
अपना सोना खोटा तो परखैया का क्या दोष | जब अपना कोई कमज़ोर हो तो दूसरों में गलतियाँ निकाल कर क्या होगा। |
अब पछताए क्या होत है जब चिड़ियाँ चुग गई खेत | समय बीत जाने पर पछतावा करना व्यर्थ है। |
आंख बची और माल यारों का | अपने सामान से थोड़ा-सा भी ध्यान हटा कि सामान की चोरी हो सकती है। |
आगे कुआं पीछे खाई | दोनों और संकट होना। |
अरहर की टट्टी और गुजराती ताला | अनमेल प्रबन्ध व्यवस्था। |
आगे नाथ न पीछे पगहा | पूर्णतः अनियंत्रित। |
आटे के साथ धुन भी पिसता है। | ग़लत व्यक्ति की संगत में अच्छा व्यक्ति भी सज़ा पाता है। |
आधा तीतर आधा बटेर | अनमेल योग। |
आधी छोड़ एक को ध्यावे आधी मिले न सारी पावे | लोभ के कारण सहज रूप से उपलब्ध वस्तु का त्याग कर देना। |
आ बैल मुझे मार | जानबूझकर परेशानी को निमंत्रण देना |
आम के आम गुठलियों के दाम | दोहरा फायदा होना |
आए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास | अपने बड़े लक्ष्य को भूल कर छोटे काम में लग जाना |
आसमान से गिरा खजूर में अटका | एक मुसीबत से निकल कर दूसरी मुसीबत में पड़ जाना |
इन तिलों में तेल नहीं | किसी भी तरह के मुनाफे की संभावना नहीं होना |
इमली के पात पर दण्ड पेलना | संसाधनों के अभाव में बड़े कार्य को करने की कोशिश करना |
ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया | संसार में कहीं समानता नहीं है। |
उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे | दोषी व्यक्ति द्वारा निर्दोष पर लांछन लगाना |
उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई | बेशर्म व्यक्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता |
ऊँची दुकान फीका पकवान | वास्तविकता से अधिक दिखावा करना |
ऊँट किस करवट बैठता है? | किसी घटना के घटित होने का इंतज़ार करना |
ऊँट के मुँह में जीरा | आवश्यकता की अपेक्षा उपलब्ध मात्रा में कमी होना |
ऊँट की चोरी और झुके-झुके | ऐसे किसी कार्य को गुप्त रूप से करना जिसको गुप्त रखना असंभव हो। |
एक अनार सौ बीमार | किसी वस्तु की मांग अधिक होना और पूर्ति कम होना |
एक हाथ से ताली नहीं बजती | एक पक्ष के साथ देने से काम पूरा नहीं होता |
एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है | बुरी आदतों से ग्रसित एक व्यक्ति अपने सभी दोस्तों को वह आदत लगा देता है |
एक और एक ग्यारह होते है | एकता में बहुत ताकत होती है |
एक म्यान में दो तलवार नहीं आ सकती | एक स्थान पर दो प्रतिद्वंद्वी नहीं रह सकते |
एक पन्थ दो काज | एक प्रयास से दो काम सिद्ध हो जाना |
एक तो करेला और दूसरा नीम चढ़ा | एक साथ दो-दो दोष होना |
कभी नाव गाड़ी पर, कभी गाड़ी नाव पर | स्थितियों का एकदम विपरीत परिवर्तन। |
ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डरें | अत्यधिक कठिन कार्य करने की ठान लेने के बाद आने वाली बाधाओं से नहीं डरना |
कर ले सो काम और भजले सो राम | समय पर किया हुआ कर्म ही अपना होता है |
ककड़ी-चोर को फाँसी की सज़ा नहीं दी जा सकती | साधारण अपराध के लिए अत्यधिक कठोर सज़ा नहीं दी जा सकती |
कानी के ब्याह में कौतुक ही कौतुक | किसी में दोष होने पर परेशानियां आती ही रहती है |
क़ाबुल में क्या गधे नहीं होते | अपवाद हर जगह होते है |
कोऊ नृप होइ हमें क्या हानी | हर तरह के परिवर्तन के प्रति उदासीनता का होना |
कौआ चले हंस की चाल | बुरे आचरण वाले मनुष्य द्वारा अच्छे आचरण का दिखावा करना |
कही खेत की, सुनी खलियान की | कहना कुछ सुनना कुछ |
कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा | अनमेल वस्तुओं का संग्रह करना |
कोयले की दलाली में हाथ काले | बुराई का साथ देने पर बुराई ही मिलती है |
खग जाने खग की ही भाषा | समान प्रवृत्ति के लोग एक दूसरे की प्रवृत्ति समझते है |
खरी मजूरी चोखा काम | मेहनत की अच्छी कीमत मिलने पर काम भी अच्छा होता है |
खरबूजे को देखकर खरबूज़ा रंग बदलता है | किसी में परिवर्तन देख कर दूसरे में परिवर्तन आता है |
खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे | असफलता से लज्जित होकर गुस्सा करना |
खुदा गंजे को नाखून नहीं देता | बूरा व्यवहार करने वाले और अधिकार हीन व्यक्ति को अधिकार नहीं मिलता |
खोदा पहाड़ और निकली चुहिया | मेहनत अधिक करना और लाभ कम मिलना |
गुड़ न दे पर गुड़ की सी बात तो करे | किसी की मदद नहीं कर सकते तो कम से कम अच्छा व्यवहार तो करना ही चाहिए |
गुड़ खाए मर जाए तो ज़रूर देने की क्या ज़रूरत | यदि कोई कार्य शान्ति पूर्वक हो रहा हो तो कठोर व्यवहार नहीं करना चाहिए |
घर का जोगी जोगना आन गाँव का सिद्ध | पहचान वालों की अपेक्षा अनजान लोगों को अधिक महत्व देना |
घर की मुर्ग़ी दाल बराबर | आसानी से मिल जाने वाली वस्तु की कद्र नहीं करना |
घोड़ा घास से यारी करे तो खाए क्या | यदि जीवनयापन करने के लिए आवश्यक से भी लिहाज़ किया जाए तो जीवन कैसे चलेगा |
घर का भेदी लंका ढाए | घर का रहस्य जानने वाला व्यक्ति हानी पहुंचा सकता है |
का वर्षा जब कृषि सुखाने | नुक़सान हो जाने के पश्चात उपाय करने से क्या फ़ायदा |
काजी जी दुबले क्यों, शहर का अन्देशा है | पराए लोगों के दुःख से चिंतित रहना |
कागहि कहा कपूर चुगाए, स्वान न्हवाए गंग | दुर्जन मनुष्य की प्रकृति बहुत कोशिश करने पर भी नहीं बदलती। |
घर में नहीं दाने, बुढ़िया चली भुनाने | झूठा प्रदर्शन करना |
घर आया नाग न पूजिए, बाम्बी पूजन जाय | क़िस्मत से मिले अवसर का लाभ नहीं उठाकर फिर उसी अवसर के लिए कोशिश करना |
घर खीर तो बाहर खीर | यदि घर में सम्मान मिल जाए तो बाहर भी सम्मान मिल जाता है। |
चन्दन की चुटकी भली गाड़ी भरा न काठ | अच्छे गुणवाली वस्तु की कम मात्रा भी अच्छी होती है जबकि गुणरहित वस्तु अधिक मात्रा में भी व्यर्थ है। |
चलती का नाम गाड़ी | जब तक सफलता रहती है तब तक ही यश मिलता है। |
चन्दन विष व्यापै नहीं लिपटे रहत भुजंग | अच्छे लोगों पर बुरे लोगों की संगत का असर नहीं पड़ता। |
चन्द्रमा को भी ग्रहण लगता है | अच्छे लोगों बुरे दिन दिन आते है |
चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए | अत्यधिक कंजूस होना |
चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात | सुख कम समय के लिए और दुःख अधिक समय तक होना |
चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता | बेशर्म व्यक्ति पर अच्छाई का असर नहीं होता। |
चुपड़ी और दो-दो | किसी अच्छी चीज़ का अधिक मात्रा में होना |
चोर-चोर मौसेरे भाई | दुष्ट लोगों में आपस में मित्रता होती है। |
चोर की दाढ़ी में तिनका | दोषी व्यक्ति अपने व्यवहार से ही दोषी होने का प्रमाण दे देता है। |
चोरी का माल मोरी में | ग़लत तरीक़े से कमाई हुई दौलत व्यर्थ में ही खर्च हो जाती है |
चोर से कहे चोरी कर शाह से कहे जागता रह | दो विरोधियों से एक साथ सांठ-गांठ करना |
चोरी और सीना जोरी | अपराध करना और अकड़ भी दिखाना |
छछूंदर के सर में चमेली का तेल | अयोग्य व्यक्ति को स्तरीय वस्तु का मिल जाना। |
छोटा मुँह बड़ी बात | सामर्थ्य से अधिक के बारे में डींग मारना। |
टके के लिए मस्जिद तोड़ना | मामूली स्वार्थ के लिए बहुत बड़ा नुकसान कर लेना |
ठोकर लगी पहाड़ की, तोड़े घर की सिल | किसी ताकतवर से लज्जित होकर घर के लोगों पर गुस्सा निकालना |